स्त्री शोषण - सामाजिक कुरीति
वैदिक
काल मे जिस स्त्री को देवी की तरह माना जाता था आज उसका घोर अपमान अपनी
जड़े जमा रहा है । उसको केवल भोग विलास की वस्तु समझने वालों तथा स्त्री को
हेय दृष्टि से देखने वालों की बीमार मानसिकता कहें या पुरुष वर्चस्व की
प्रधानता कहें ,
जो भी हो परंतु अधिकांश वर्ग स्त्री को उसका अधिकार नहीं दे पाता है और
उसे सामाजिक न्याय से वंचित रखा जाता है । कहीं कहीं हम देखते है की स्त्री
और पुरुष दोनों ही कमाऊ होते हैं पर स्त्री को घर और बाहर दोनों की
जिम्मेदारियों का भलीभाँति निर्वहन करना पड़ता है अन्यथा घर मे व आफिस दोनों
जगह उसका मानसिक शोषण होता है क्योंकि वह एक नारी है। आज अधिकांश
स्त्रियाँ काम करती हैं घर और रोजगार दोनों को कुशलता पूर्वक संभालतीं हैं ।
आज
हम यह भी देख रहे है कि कुछ कुत्सित मानसिकता वाले लोगो ने बलात्कार सरीखा
सबसे घिनौना तरीका स्त्री शोषित करने के लिए अपनाया है । पीड़िता स्त्री या
बालिका का जीवन अंधकारमय हो जाता है कई तो लोक लाज के डर से अपना मुंह
नहीं खोल पाती और कई अपना जीवन ही समाप्त कर लेतीं हैं साथ ही ऐसा भी देखने
मे आता है कि अपराधी पीड़िता का जीवन ही छीन लेता है । कुछ ही पीड़िताएं इस
दुःख से बाहर निकल पाती हैं और अपराधी के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत करतीं
हैं।
बलात्कार एक संज्ञेय अपराध है और पुलिस अधिकारी बिना वारंट के भी अभियुक्त को हिरासत मे ले सकता है । बलात्कार का आरोप ,
सेशन कोर्ट द्वारा पूर्णतया विचारणीय होता है । इसकी सामान्य सजा कम से कम
7 से 10 वर्षों तक कारावास और अधिक से अधिक आजीवन कारावास औए जुर्माना है ।
अभी हाल ही मे इन मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का भी गठन
हुआ है ताकि पीड़िता को शीघ्र न्याय और अपराधी को सजा सुनाई जा सके । भारतीय
दंड संहिता की धारा 511 के अंतर्गत बलात्कार का प्रयास करना भी अपराध है ।
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