कृष्ण की द्वारिका को किसने नष्ट किया था
मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से
स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना
चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया
था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि द्वारिका नष्ट हो गई? किसने किया द्वारिका
को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई द्वारिका? क्या किसी आसमानी
ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया
द्वारिका को। आखिर क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका और फिर बाद में वह
समुद्र में डूब गई। अंतिम पेज पर खुलेगा इसका रहस्य जो आज तक कोई नहीं
जानता। इस सवाल की खोज कई वैज्ञानिकों ने की और उसके जवाब
भी ढूंढे हैं। सैकड़ों फीट नीचे समुद्र में उन्हें ऐसे अवशेष मिले हैं
जिसके चलते भारत का इतिहास बदल गया है। अब इतिहास को फिर से लिखे जाने की
जरूरत बन गई है। आओ, इस सबके खुलासे के पहले जान लें इस क्षेत्र की प्राचीन
पृष्ठभूमि को। पहले जान लें इस क्षेत्र का इतिहास… तब खुलेगा द्वारिका का
एक ऐसा रहस्य, जो आप आज तक नहीं जान पाए हैं। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु,
2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया
है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों
पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से
राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु
से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई। इन पांचों कुल के लोगों ने
आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी हैं जिसमें से एक दासराज्ञ का युद्ध और
दूसरा महाभारत का युद्ध प्रसिद्ध है। पुराणों में उल्लेख है कि
ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु
या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। (हरिवंश
पुराण, 1, 30, 29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और
उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने
ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1, 85, 32) किसको कौन सा क्षेत्र मिला : ययाति
ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम
में द्रुहु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर
में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के
राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। यदु ने पुरु पक्ष
का समर्थन किया और स्वयं मांडलिक पद से इंकार कर दिया। इस पर पुरु को राजा
घोषित किया गया और वह प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज
पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार
है- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और
शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठान के
दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला और द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना
दो-आब का उत्तरी भाग तथा उसके पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या
राज्य से मिलती थी, अनु के हिस्से में आया। यदि हम यादवों के
क्षेत्र की बात करें तो वह आज के पाकिस्तान स्थित सिन्ध प्रांत और भारत
स्थित गुजरात का प्रांत है। इसके बीच का क्षेत्र यदु क्षेत्र कहलाता था।
पहले राज्य का विभाजन नदी और वन क्षेत्र के आधार पर था। सरस्वती नदी पहले
गुजरात के कच्छ के पास के समुद्र में विलीन होती थी। सरस्वती नदी के इस पार
(अर्थात विदर्भ की ओर गोदावरी-नर्मदा तक) से लेकर उस पार सिन्धु नदी के
किनारे तक का क्षेत्र यदुओं का था। सिन्धु के उस पार यदु के दूसरे भाइयों
का क्षेत्र था।ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह
दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से
एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका,
कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल,
गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान भी कहा
जाता है।
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4
धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका।
द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट
द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है। द्वारिका
का प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के
समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ
था। यहां द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही अनेक मंदिर और
सुंदर, मनोरम और रमणीय स्थान हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत
से प्राचीन मंदिर तोड़ दिए। यहां से समुद्र को निहारना अति सुखद है। कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण
ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और
यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर
बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत:
यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का
निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर
कृष्ण कुशस्थली आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही
विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया। कृष्ण
अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। यहीं 36 वर्ष राज्य करने के
बाद उनका देहावसान हुआ। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के
नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के
यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे।
द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची
यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर
में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को
ब्रजमंडल कहा जाता है।
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