Tuesday, 7 June 2016

सामाजिक कुरीतियाँ एक अभिशाप हैं !!

सामाजिक कुरीतियाँ एक अभिशाप हैं !

 समाज मात्र एक शब्द नहीं अपितु यह शब्द  अपने आप मे बड़ी गहराई लिए हुए है । व्यक्ति जुड़ कर रिश्ते बनते है रिश्तों से परिवार बनता है, परिवार जुडते जुडते एक समाज की संरचना करते है । इसलिए समाज हमारा ही परिवार है ये अलग नहीं है । व्यक्तियों के साथ साथ उनकी अच्छी बुरी सोच भी एक दूसरे से जुड़ जाती है । संवेदनाओं और इंसान का आपस मे  बड़ा गहरा रिश्ता है । किन्तु जहां संवेदनाए समाप्त हो जाती है वहाँ कुरीतियाँ जन्म लेती है । आज समाज मे हम अपने चारों ओर देखते है तो यही पाते है की सारा समाज संवेदना हीन हो चुका है । संवेदनाहीन समाज मे अनेकों कुरीतियाँ फैल रही है । जिनकी वजह से आज समाज का विकृत रूप सामने आ रहा है।  समाज मे फैली तमाम बुराइयाँ जैसे स्त्री शोषण , कन्या भ्रूण हत्या , भ्रष्टाचार , दहेज, बाल श्रम, छुआछूत, बाल विवाह  इत्यादि जिनको दूर करने के लिए हम सभी काफी समय से प्रयास रत है  कुछ कुरीतियों पर लगाम लगाई जा चुकी है जैसे सती प्रथा , बाल विवाह, किन्तु बाल विवाह की कुप्रथा आज भी हमे राजस्थान , मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों मे देखने सुनने को मिल ही जाती है।

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